namkin chay ek marmik prem kathaa - 1 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | नमकीन चाय एक मार्मिक प्रेम कथा - अध्याय-1

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नमकीन चाय एक मार्मिक प्रेम कथा - अध्याय-1

अध्याय - 1

हैलो रमेश हैप्पी बर्थडे। चंदन बोला
हैलो चंदन थैक्ंस यार। कब आया भाई ?
बस अभी थोड़ी देर ही हुआ, बड़ी जोरदार पार्टी दी है तुमने। चंदन बोला।
हाँ यार, पापा पैसा खर्च करने के लिए मान गए नहीं तो मैं मेडिकल रिप्रेसेंटेटिव इतना कहाँ कर पाता।
अच्छा है यार कम से कम तेरे पिता तो है मेरा तो यार आगे पीछे कोई नहीं। अनाथालय ने पाल पोसकर पढ़ा दिया यही बड़ी बात है। चंदन बोला।
तूने कुछ ड्रिंक लिया कि नहीं ?
नहीं यार तुझे तो पता है मैं नहीं पीता, हाँ केक जरूर खा लूंगा।
अच्छा तो पहले पेट पूजा कर ले या फिर आजा डाँस फ्लोर पे, दो-चार स्टेप हो जाए।
नहीं भाई मैं यहीं पर ठीक हूँ। अच्छा ये बता तूने पार्टी दिन में क्यों रखी? चंदन ने पूछा।
क्या है चंदन, अपनी छोटी बहन की सहेलियों को भी इनवाइट करने बोल दिया था और वे सब हॉस्टल में रहती हैं। हॉस्टल शाम को 7 बजे बंद हो जाता है इसलिए मुझे दिन में पार्टी रखना पड़ा। रमेश बोला।
अच्छा तभी यहाँ लड़कियां ज्यादा दिखाई दे रही हैं। चंदन बोला।
तू बस एंजॉय कर ना पार्टी। नाच, गा, खा, पी और मौज कर।
यू प्लीज कैरी ऑन रमेश। मैं देखता हूँ तू अपने गेस्ट लोगों को अटैण्ड कर। जरूरत होगी तो मैं तुझे बुला लूँगा। चंदन ने कहा।
रमेश डाँस फ्लोर पर चला गया और उन लड़कियों के साथ डाँस करने लगा। चंदन दूर खड़ा हो गया और सूप पीते-पीते डाँस देखने लगा। चंदन गोवा के एक अनाथालाय में पला बढ़ा था। उसको अपने माता-पिता का कोई ज्ञान नहीं था। नौकरी ढूंढते-ढूढते वह मेडीकल रिप्रेसेंटेटिव बन गया था और उसे रायपुर पोस्टिंग मिली थी। यहाँ वह एक फ्लैट को किराए पर लेकर रहता था। अचानक उसकी नजर एक सुंदर लड़की से टकराई, तत्काल उसने अपने नजरे नीची कर ली। अब तक वो किसी के चेहरे पर ध्यान नहीं दे रहा था परन्तु इस लड़की से नजरें मिलने के बाद वह उसकी ओर आकर्षित हुए बिना रह नहीं सका।
कुछ पाँच सात मिनटों में उन दोनों की आँखे दो-तीन बार टकरायीं और दोनो को इस बात का अहसास हो गया कि वे लोग एक-दूसरे को देख रहे हैं।
रमेश डाँस फ्लोर से निकलकर बाहर आ गया और चंदन के पास खड़ा हो गया।
तूने कुछ खाया कि नहीं ? रमेश ने पूछा।
भाई जी भरकर खा लिया।
तो थोड़ी आईसक्रीम खा ले।
खा लूंगा भाई। तुम तो जोरदार डाँस करते हो रमेंश, ये कला तुमने अपनी मेडीकल टीम के पार्टी में तो कभी नहीं दिखाई। चंदन बोला।
क्या है यार वहाँ सीनियर लोग रहते हैं अगर किसी का इगो हर्ट हो गया तो नौकरी चली जायेगी। यहाँ तो किसी का डर नहीं, अपनी ही पार्टी है और अपने ही लोग हैं।
अच्छा भाई एक बात पुंछू ये सारी लड़कियां क्या तुम्हारी बहन की क्लासमेंट्स हैं ?
हाँ क्यों ? कोई पसंद आ गई क्या ? रमेश ने पूछा।
वो पीली गाऊन वाली लड़की कौन है ? चंदन ने पूछा।
वो, वो तो रिया है मेरी छोटी बहन की खास दोस्त। रमेश बोला।
काफी खूबसूरत है और एक दो बार मेरी उससे आँखे चार हो गई। चंदन ने बताया।
अच्छा पर मैं तेरी कोई मदद नहीं करने वाला। मेरी तो इमेज का सवाल है भाई। जो कुछ करना है तुझे ही करना है और ये भी बता देता हूँ कि कल सब अपने घर गर्मी की छुट्टी में चली जाऐंगी। इसलिए जो करना है आज ही कर ले। रमेश बोला।
यार तू बड़ा विचित्र प्राणी है। दोस्त मेरा है कि उसका ? साथ भी नहीं दूंगा बोलता है और बता भी रहा है कि कल चली जाएगी।
सही तो बोल रहा हूँ तू खुद ही हिम्मत नहीं कर पा रहा है तो मैं क्या करूँ। रमेश बोला।
चंदन थोड़ी देर तक इधर-उधर टहलता रहा। सोच विचार करता रहा कि क्या करूँ, पर हिम्मत नहीं हो पा रही थी। अंततः जब सब लोग जाने लगे और उसे लगने लगा कि अब उससे मुलाकात नहीं हो पायेगी तब बड़ी हिम्मत जुटाकर वह उसके पास गया।
एक्सक्यूज मी आप रिया है ना ? चंदन बोला।
हाँ जी मैं रिया हूँ। बताइये क्या बात है ?
जी मेरा नाम चंदन है मैं रमेश का कलिग हूँ उसके साथ कंपनी में मैं भी एम. आर. हूँ।
अच्छा फिर।
क्या है रमेश मुझे बता रहा था कि आप पढ़ाई में शानदार है, कॉलेज की टापर हैं।
हाँ तो ?
कुछ नहीं, मुझे पढ़ाई के विषय में आपसे थोड़ी बात करनी थी। चंदन बोला।
हाँ बताईये ना क्या बात करनी है।
क्या हम कहीं चल सकते हैं ? बैठकर बात कर लेते, अभी तीन बजे हैं मैं आपको पाँच बजे तक छोड़ दूंगा।
कहाँ चलना है ?
कहीं भी चाय पीने , जहाँ आप रेग्युलर जाती हों।
पर मैं तो आपको ठीक से जानती भी नहीं। रिया बोली।
देखिए ऐसा कुछ भी नहीं है आप मुझ पर भरोसा कर सकती हैं। आखिर मैं रमेश का दोस्त हूँ।
ठीक है रमेश भैया से ही पूछ कर आ जाती हूँ।
ठीक है पूंछ लीजिए फिर चलते हैं।
चलिए ठीक है यहीं पास ही में एक रेस्टोरेंट है वहीं पर चलते हैं। पैदल ही चलते हैं।
ठीक है चलिए।
पाँच मिनट पैदल चलकर दोनों रेस्टोरेंट पहुँच गए।
हाँ बताईये क्या नाम बताया आपने ?
चंदन। चंदन कुमार।
सिर्फ चन्दन ?
जी सिर्फ चंदन। क्योंकि मैं अनाथ हूँ, अनाथालय में पढ़ा-बढ़ा हूँ।
ओ सॉरी, चंदन जी। रिया बोली।
सॉरी किसलिए रिया जी यही सत्य है पर इसका मतलब ये नहीं कि मुझे अपनी जमीन, अपनी संस्कृति अपने संस्कारो का ज्ञान नहीं। मैंने सीखने की पूरी कोशिश की है।
गुड, आपकी बातों से समझ आ रहा है। वैसे कहाँ के अनाथालय में थे ?
मैं, मैं तो मूलतः गोवा का हूँ, समुद्र के नजदीक ही हमारा अनाथालय था। वहाँ की रेत समुद्र की आवाज, नमकीन फिजा, नमक का स्वाद सभी चीज मैं बहुत मिस करता हूँ।
तो यहाँ कैसे आना हुआ आपका ?
बस जॉब के सिलसिले में। यहीं शंकर नगर में फ्लैट लेकर रहता हूँ। वैसे आप कहाँ की रहने वाली है ?
मैं रायगढ़ के रहने वाली हूँ, आपकी और मेरी कहानी लगभग एक जैसी ही है। बचपन मे ही एक एक्सीडेंट में मेरे माता पिता का देहांत हो गया। अभी मैं अपने दादा-दादी के साथ रहती हूँ, उन्होंने ही मुझे पाल पोसकर बड़ा किया। ये मेरा अंतिम वर्ष था। अब वापस कल रायगढ़ लौटना है।
ओ तो कल आप चली जाएगी ?
हाँ जाना ही है। सोच रही हूँ वहीं कुछ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करूंगी।
यहाँ क्यों नहीं करती। रायपुर तो तैयारी के लिए बहुत अच्छी जगह है। इस बहाने आप मेरी भी तैयारी करा देना।
आप क्या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहें हैं ?
हाँ रिया जी वही पूछने तो आपको यहाँ लाया था ?
अच्छा! परंतु हॉस्टल तो कल से बंद हो जाएगा। मेरे रूकने के लिए तो कोई जगह ही नहीं है।
आप रमेश की छोटी बहन के पास क्यूँ नहीं रूक जाती, वो तो आपकी अच्छी दोस्त है। वहाँ रूक जाइये और मुझे थोड़ा पढ़ा दीजिए, फिर एकात महीने बाद चले जाइये।
अच्छा पूछकर देखती हूँ, अगर वो मान जाती है तो आपको गाइड कर दूँगी । अच्छा अब तो चाय मंगाइये।
ओ सॉरी, भैया दो हाफ चाय दीजिए और शक्कर अलग से ले आइये।
थैक्स रिया जी।
आप मुझे तुम कहकर बात किया करिए प्लीज।
इतनी जल्दी आपको मुझ पर भरोसा हो गया। चंदन ने कहा
आपको नहीं तुमको। और हाँ आप भले आदमी लगते हैं इसलिए इतना सपोर्ट कर रही हूँ, नहीं तो किसी की हिम्मत नहीं मुझसे बात करने की।
चंदन थोड़ा सहम गया, वो जिस उद्देश्य से उसे यहाँ लाया था वो बोलने की हिम्मत नहीं कर पाया। तभी वेटर चाय लेकर आ गया।
कितनी चम्मच शक्कर डालूं आपकी चाय में ? रिया ने पूछा।
नमक, चंदन बोला।
जी! क्या बोले आप ? चाय में शक्कर की जगह नमक डालकर पीते हैं आप ?
हाँ, ये स्वाद मुझे अपनी मातृभूमि की याद दिलाता है।
भैया एक चम्मच नमक ले आइये। चंदन बोला।
आपने तो मुझे प्रभावित कर दिया। सचमुच, रिया ने कहा। मैं आपकी मदद के लिये बिल्कुल रूकना पसंद करूंगी।
तुम भी मुझे आप मत कहो इससे बूढ़ा हो जाने का अहसास होता है और मेरे जॉब में इतनी रेसपेक्ट की जगह भी नहीं है।
अच्छा ठीक है मैं आज जी रमेश भैया से बातचीत करती हूँ अगर वो अनुमति देते हैं तो मैं कल वहाँ शिफ्ट हो जाऊंगी।
ठीक है चलिए मैं आपको छोड़ देता हूँ रमेश के घर तक। चंदन बोला। मैं भी उसको बोल देता हूँ आपके लिए।
दोनो कुछ ही देर में रमेश के घर पहुँच गए। रमेश, चंदन ने बाहर से ही पुकारा। तुम अंदर जाओ रिया और अपनी सहेली से बात कर लो।
रिया अंदर गई इतने में ही रमेश बाहर आया और पूछा।
क्या हुआ भाई तेरी बात हुई कि नहीं ?
बाते तो हुई यार पर वो नहीं बोल पाया जो बोलना चाहता था।
क्यों ? कुछ टॉपिक ऐसा नहीं निकला क्या ?
हाँ वो बात प्रतियोगी परीक्षा में ही उलझ गई, परंतु कम से कम मित्रता तो हो गई। धीरे से मन की बात भी बोल दूंगा।
गुड पहली मुलकात में ही दोस्ती।
हाँ भाई और सुन इस काम में तुझे मेरी मदद करनी है। मैने उसे एक महीने तेरे यहाँ रूककर मेरी तैयारी कराने कहा है।
क्या वो मान गई ? रमेश ने पूछा।
वो सब तेरे ऊपर है तू उसे अपने घर रूकने देगा तभी वो रूकेगी। चंदन बोला।
अच्छा तो ये बात है देख अभी तो मैं तैयार हूँ पर इस महीने मेरे घर मेहमान आने वाले है और पूरी गर्मी भर वो रूकेंगे तब मैं इसे रोक नहीं पाऊंगा। रमेश बोला।
चल ठीक है अभी तो व्यवस्था कर दे, तब की तब देखेंगे। कोई हॉस्टल में व्यवस्था कर देंगे।
ठीक है मैं उसे बता देता हूँ।
उतने में रिया बाहर आई।
रिया तुम मुझे भैया कहती हो ना तो बिल्कुल मेरे घर रूक सकती हो। सुमन तुम अभी साथ में जाओ और रिया का सामान लेकर आ जाओ।
थैक्यूं भैया मैं आती हूँ सुमन के साथ। कहकर रिया ने सबको बाय किया।
ठीक है कल मिलते हैं चंदन ने कहा।
चंदन की उम्मीद बढ़ गई थी। वह अति उत्साहित था। ये अनुभव उसके लिए अनमोल था।